मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

गाँवें से हिटौड़ा, नेपाल यात्रा : पहिला दिन

पहिली बार मलिकाईन से आठ महीना बाद भेंट भइल रहे एसे उनकर डिमांड रहे कि कहीं घूमे चलल जाव, हम कहनी होली में गाँवें जाते बानी जा, ओही लगले नेपाल घूमि आवल जाव। मलिकाईन की ओर से हँ होते परोगराम पक्का हो गईल। एक हप्ता के परोगराम बनल। गाँवहीं के एगो बलेरो बन्हा गईल। आज काल्ह गंउवन में बोलेरो बाड़ा ढ़ेर हो गईल बाड़ीसन। डराइबर मिलले उमा शंकर। सुक के बिहाने पाँच बजे निकले के तय भईल। बाकिर जहाँ मेहरारू होखे ओजी केहू समय से कइसे निकल सकेला! निकलत निकलत आठ बज गईल। निकलनी जा गाँव से पुरुब महें। पलानिंग रहे कि गोपालगंज, रामपुर खजुरी, सुगौली होते हुवे बीरगंज बाडर क्रास क के नेपाल में ढुकल जाव आ ओहिदिन्ने काठमांडू ध लिहल जाव। बाकिर सोचल जो हो जाईत त रावण स्वर्ग जाए का सीढ़ी ना बनवा देले रहित! खैर आगे बढ़नी जा। बलुआ अफगान घाट पर खनुवा नदी हेलनी जा आ मुसहरी होते हुए भोरे पहुँचनी जा। भोरे चरमोहानी हेलला की बाद आइल लखराँव के बारी। पहिले ई बिशाल बगइचा रहे। आम महुवा कटहर बड़हर कुल्ह के फेड़ रहल सन। अब त खाली कहे भर के बारी रहि गइल बा। आठ दस गो फेड़ बा, बाकी खेते खेत हो गइल बा। हँ, बारी के निशानी की रूप में ललगंणिया बानर खूब बाड़सन। हमार बबूनी त देख के खूबे खुश हो गईल। आगे बड़कागाँव चौराहा से दहिने ले लेहनी जा कि मीरगंज ना जा के लाईन बजार से सोझे थावें का रास्ता ध लिहल जाई। बाकिर लाईन बजार में रास्ता गड़बड़ा गईनी जा आ थावें की बजाय कुचांयकोट के रास्ता धरा गउवे आ गलती आधा घंटा बाद बुझउवे। ओकरी बाद गावाँ गाईं केहू तरे हाईवे जोहि के धरवीं जा। गोपाल गंज पहुँचत पहुँचत एगारs बज गउवे। ओजी रूकवीं जा ना, बढ़त चल गवीं जा। ओकरी बाद रामपुर खजुरी में गंडक हेलवीं जा। भूख लाग गइल रहुवे। हमार माननीय पिताश्राी मछरी बना के देहले रहवीं। एक जगहि गंडक की तीरे डाब्बा खोलउवे आ रोटी मछरी उड़ुवे। बबुनी त नदी देख के पहिले त नाचे लगुवे आ खूब फोटो घिंचवउवे। ओजी से खा पी के आगे बढवीं जा। अब शुरू भउवे खराब रास्ता, अरेराज से सुगौली ले त तबो नीमन रहुवे बाकिर सुगौली से रक्सौल ले के रास्ता त पाद पदा देहुवे। राम राम करत तीन साढ़े तीन बजे नेपाल बाडर निकलवीं जा। गाड़ी के परमिट बनवावे खातिर भणसार आफिस पर रुकते दलाल अटैैक क देहुुवसन। एगो छव स रुपिया कमीशन ले के कुल्ही कागज बनवा देहुवे। हमरा त सस्ते बुझउवे। कुल साढ़े पाँच हजार नेपाली रूपिया में कुल कागज पत्तर बन गउवे। ई कुल होत जात साढ़े पाँच-छव बज गउवे। अब त काठमांडू पहुँचला के त कवनो सवाले ना रहे। फैसला भउवे जबले चलल जाव तबले चलल जाव, आगे कहीं रूक जाईल जाई। थोड़ देर में अन्हार हो गउवे बाकिर रूकवीं जा ना। बाकिर जब पहाड़ चालू गो गउवे त मलिकाईन कहवी की हमनी का घूमे निकलल बानी जा आ कुछु लउकत हइए नईखे। त फैसला भउवे की जहें ठिक ठाक होटल मिली तहें रुक जाईल जाई।  ऊ मिलुवे हेतौड़ा में। ओजी से काठमांडू 190 कीमी रहुवे।

अब बिहाने के बात बिहाने होई। तबले फोटो देखल जाव..................

चलेके घूमे

गण्डक तीरे
नेपाल के दुआरी



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