रविवार, 24 सितंबर 2017

केदारनाथ यात्रा – तिसरका दिन: बाबा के दर्शन आ उतराई

सबेरे सबेरे साढ़े पाँच बजे उठ के हाली हाली तइयार भवीं जा। बेस कैंप से बाबा के मंदिर करीब एक कीलोमीटर बा। ओतना ठंढी में त नहाए के त सवाले ना रहुवे ेएसे जब मंदाकिनी की पुल पर पहुँचवीं त सिटुवा से कहवीं कि बोतल में पानी भर लेआउ कम से कम कपार पर छिछकार लीं। पानी एतना ठंढा रहुवे कि खाली पानी भरत भर में बाबू के हाथ कठुवा गउवे। हमरो खाली तरहथी पर पानी ले के छिछकारे में हालत खराब हो गउवे। हाथ पर पानी डालते बुझउवे की हाथ त अब गइल काम से।
ओजी से आगे बढ़ला पर बाढ़ से जवन नोकसान भइल रहे उ लउके लागल। कहीं छत भहराईल रहे त कहीं कहीं पूरा मकाने छितरा गइल रहे। भगवान जब खिसियाले त कुछउ ना छोड़ेले।
 मंदिर की दुवारी पर बीस पचीस आदमी के लाइल लागल रहुवे। हमनियो का लाइन में लाग गवीं जा। लाइन में लगले लगले एगो दोकान से परसादी किनवीं। उ थरिया में नीमन से सजा के धरा देहुवे। ओ कठुवइला में स्टील के थरिया हाथ में ले त लेहवीं बाकिर बुझात रहुवे कि हाथ कटिये जाई। मंदिर की दुवारी पर पहुँच के जुता खोल देहवीं जा। एगो पातरे पलास्टिक के मैट बिछावल रहुवे आ सभ लो ओही पर खड़ा रहुवे। ओपर तनी पानी रहुवे एसे हम मैट से हट के फर्श पर खड़ा होखे के कोशिस करवीं बाकिर ओ ठंढी में पत्थर की फर्श पर गोड़ धरते जान निकल गउवे आ तुरंते मैट पर वापस आ गवीं।
दुवारी की सामने नंदी महराज के विशाल मुर्ती बा। मुर्ती की सामने हम थरिया में कपूर जरा लेहवीं। लाइन में धीरे धीरे आगे बढ़त मंदिर में पहुँच गवीं। पहिले एगो हाल बा जवना में बीच में एगो अउर नंदी जी बाड़े आ चारू ओर देवाल में दियरख बना के अलग अलग देवता लो के बइठा दीहल बा। ओके धीरे धीरे पार क के गर्भगृह में पहुँचवीं आ शिव तांडव स्त्रोत्र के पाठ करत पूुजा करे लगवीं। एजी भगवान के रूप लिंग की रूप में ना हो के बैल की कूबड़ खान बा। दर्शन क के बगल वाला गेट से बाहर निकलवीं जा। ओकरी बाद फोटोग्राफी शुरू भउवे।
चारू ओर उजरे उजर बरफ वाला पहाड़ आ ओपर बिहाने बिहाने के ललछाहूँ घाव परत रहुए त एकदम केसरिया हो जात रहूए। ओह ठंढी में फोटउओ घींचल मजाक ना रहुए काहे से कि कुल्ह अंगुरी कठुआ गइल रहुए।
ओकरी बाद मंदिर की पीछे गवीं जा जहाँ ऊ विशाल पत्थर रहुए जवन बाढ़ में मंदिर के बचवले रहुए। अब ओकर नाम रामशिला धरा गइल बा आ ओकरो पूजा होखे लागल बा। करीब आधा घंटा मंंदिर की अगल बगल बितवला की बाद वापसी शुरू करवीं जा। रास्ता में ेएक जगहि गढ़वाल मंडल विकास निगम की होटल में नाश्ता करवीं जा आ बोलत बतियावत चल देहवीं जा। हमरा बुझात रहुवे कि उतराई में आराम रही बाकिर ईहो कम मुश्किल ना रहुए। जहाँ चढ़े में सांस फुलत रहुए ओहीजी उतरे में गोड़ की पंजा पर बहुत जोर परत रहुए।
वापस गौरी कुंड पहुँचत पहुँचत चार बज गउवे। आगे आधा घंटा सोनप्रयाग पहुँचे में लाग गउवे। सिटुआ हमरा धीरा चलला पर बहुत भड़कुए। ओकर मन रहुए कि समय से वापस आ के एही लगले बद्रीनाथ चल चलेके जवन की हमरी धीरा चलला से गड़बड़ा गउए। सोनप्रयाग में रुद्रप्रयाग भा हरिद्वार के कवनो गाड़ी ना रहुए। खोजत खोजत एगो गुप्तकाशी के बोलेरो भेटउए। उहो सवारी भरत भरत पाँच से ऊपर बजा देहुए। करीब साढ़े छव ले गुप्तकाशी पहुँचवीं जा। ओजी उतरते रूद्रप्रयाग के गाड़ी भेंटा गउए, तुरंते ध लेहवीं जा आ साढ़े सात ले रूद्रप्रयाग पहुँचवीं जा। रातीखान मटन रोटी उड़ावल गउवे आ तीन स में होटल मिल गउवे, ले के ओठंग गवीं जा।
अगिला दिने सबेरे हरिद्वार के बस ध के हरिद्वार पहुँचवीं जा। ओजी हर की पैड़ी पर नहा के ट्रेन ध के राती के दस बजे ले दिल्ली रूम पर।
                                                                      जै जै
बाढ़ के तबाही

बाबा के पहिला झलक

रउवे कहीं

बजार

घाम छांह

जय बाबा की

बम बम




ये आराम का मामला है

एगो झरना

हार गइनी रे दादा